स्पेन के शोधकर्ताओं ने6466 दवाओं को कम्प्यूटर तकनीक की मदद एनालाइज़ करकेऐसीदो ड्रग्स की पहचान कीहैं जो संक्रमण के बाद कोरोना की संख्या (रेप्लिकेशन) को बढ़ने से रोक सकते हैं। इस विशेष रिसर्च प्रोग्राम कोकोविड मूनशॉट नाम दिया गया है।
यह दावा स्पेन की रोविरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये दोनों कोरोना के उस एंजाइम पर लगाम लगाएंगीजिसकी वजह से वायरस अपनी संख्या को बढ़ाकर मरीज को वेंटिलेटर तक पहुंचा देता है।
दो में से एक दवा का इस्तेमाल जानवरों में किया जाता है
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलीक्युलर साइंसेज में प्रकाशित शोध के मुताबिक, कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग हैं। इनमें से एक का इस्तेमाल इंसान पर और दूसरे का जानवरों के लिए किया जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है इस रिसर्च के नतीजे वैक्सीन तैयार करने में मददगार साबित होंगे।
ऐसे काम करती हैदवा
कोरोना में एम-प्रो नाम का एक एंजाइम पाया जाता है। यह एंजाइम ऐसे प्रोटीन को बनाता है जिसकी इसकी मदद से वायरस शरीर में पहुंचकर अपनी संख्या को बढ़ाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, दोनों दवाएं इसी एंजाइम को रोकने का काम करतीहैं। रिसर्च में इसकी पुष्टि भी हुई है।
दवा का एंजाइम पर 11 फीसदी से अधिक असर हुआ
शोधकर्ताओं की मेहनत सेरिसर्च प्रोग्रामकोविड मूनशॉटके दौरान यह सामने आया कि कोरोना के मरीजों को 50 माइक्रोमोलर कारप्रोफेन देने पर एम-प्रो एंजाइम में 11.90 फीसदी और सेलेकॉग्सिब देने पर 4 फीसदी की कमी आती है।
एम-प्रो एंजाइम पर कई देशों में चल रही रिसर्च
कुछ देशों में ऐसे ट्रायल चल रहे हैं जिनका लक्ष्य इसी एम-प्रो एंजाइम पर रोक लगाना है। इसके लिए एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग लेपिनोविर और रिटोनाविर का प्रयोग किया जा रहा है। इन दवाओं को एचआईवी के इलाज के लिए बनाया गया था। इन ट्रायल में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मदद कर रहा है।
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from Dainik Bhaskar
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