दो महीने अकेली हॉस्टल में रही मॉरिशस की पूरवशा, वहां की सरकार ने फ्लाइट भेजी तो लौटने से इनकार कर दिया

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक हॉस्टल में मॉरिशस की पूरवशा सुखु दो माह तक अकेली रही। लॉकडाउन लगते ही पूरा हॉस्टल खाली हो गया लेकिन फ्लाइट्स बंद होने के चलते पूरवशा यहीं फंस गई।
इसके बाद कॉलेज प्रशासन ने न सिर्फ पूरवशा के लिए हॉस्टल खोले रखने का फैसला लिया बल्कि उसे दोनों टाइम चाय-नाशता और खाना भी दिया।

अभी दो हफ्ते पहले जब हॉस्टल को क्वारैंटाइन सेंटर बनाया गया तो कॉलेज की टीचर उसे अपने घर ले आईं।

अपनी टीचर सरला मेनन की फैमिली के साथ पूरवशा।

पूरवशा ने 12वीं बोर्ड में पूरे मॉरिशस में मराठी सब्जेक्ट में टॉप किया था। इसी के चलते उन्हें भारत सरकार द्वारा मराठी पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप ऑफर की गई थी।
पूरवशा ने यह स्कॉलरशिप ली। उन्हें कोल्हापुर के महावीर कॉलेज में एडमिशन मिल गया। यहां से मराठी में बीए ऑनर्स कर रही हैं। सेकंड ईयर पूरा भी हो चुका है।

हॉस्टल में एकदम अकेली, एंटरटेनमेंट के लिए टीवी तक नहीं थी

पूरवशा कहतीहैं, हॉस्टल में दो महीने अकेले बिताना काफी मुश्किल था, क्योंकि न कोई बात करने के लिए था और न ही एंटरटेनमेंट का कोई जरिया था। टीवी तक नहीं थी।

पूरवशा 60 दिनों में 28 किताबें पढ़ चुकी हैं। उसमें ये सभी किताबें शामिल हैं।

इसलिए मैंने किताबें पढ़ना शुरू किया और 60 दिनों में 28 किताबें पढ़ लीं। बोलीं, सिर्फ मेरे लिए हॉस्टल खुला रखा गया और मुझे खाना-पीना सब दिया गया।

दो हफ्ते पहले हॉस्टल को क्वारैंटाइन सेंटर बना दिया गया है और अब वहां पर कोरोना संक्रमित मरीजों को रखा गया है। इसके बाद मेरे कॉलेज की टीचर सरला मेनन मुझे अपने घर ले आईं और बेटी की तरह रख रही हैं।

इन दिनों पूरवशा कुकिंग सीख रही हैं।

पूरवशा कहतीहैं, ‘4 जून को मॉरिशस से एक स्पेशल फ्लाइट भारत आने वाली है। यह फ्लाइट मॉरशिस के जो स्टूडेंट्स और दूसरे लोग यहां फंसे हैं, उन्हें लेने आ रही है लेकिन मैंने जाने से इनकार कर दिया।
क्योंकि मैं यहां पूरी तरह से सुरक्षित हूं। घर जैसा फील करती हूं। मेरे मां-पापा भी अब संतुष्ट हैं। इसलिए मैं अभी मॉरशिस जाना नहीं चाहती।’

घर पर कुछ न कुछ क्रिएटिव करते रहती हैं।

पूरवशा के मुताबिक, मैं डिग्री पूरी करके ही मॉरिशस जाऊंगी। मैं मराठी सब्जेक्ट की टीचर बनना चाहती हूं। मॉरिशस में बड़ी संख्या में मराठी लोग रहते हैं इसलिए वहां मराठी का स्कोप काफी अच्छा है।

यही नहीं पूरवशा का तोपीजी और पीएचडी के लिए स्कॉलरिशप मिलती हैतो दोबार यहां आकर पढ़ाई करने का मन है।

फिश करी के लिए जाना जाता है मॉरिशस, मैम के घर दो साल बाद खाने को मिली

वे कहती हैं, मेनन मैम के घर में जब से मैं शिफ्ट हुई हूं, तब से बहुत टेस्टी खाना मिल रहा है। हॉस्टल का फूड एकदम सिम्पल होता है। मैम के घर मुझे नॉनवेज खाने को भी मिल रहा है, जो मुझे हॉस्टल में कभी नहीं मिला। मैंने करीब दो साल बाद नॉनवेज खाया है।

कहती हैं शुरुआत में इंडियन फूड खाना मुश्किल था लेकिन अब बहुत पसंद आता है।

मॉरिशस और भारतीय व्यंजन में बहुत बड़ा अंतर है। मॉरिशस फिश करी के लिए बहुत जाना जाता है और मुझे मैम के घर बहुत टेस्टी फिश करी खाने को मिल रही है।
मॉरिशस कुजीन काफी हद तक फ्रेंच कुजीन से मिलती है। वहां ज्यादा मसालेदार खाना नहीं खाया जाता। यही इंडिया में आने के बाद मेरे सामने सबसे बड़ाचैलेंज था। क्योंकि यहां काफी स्पाइसी खाना बनाया जाता है।
इंडियन फूड को अच्छे से खाने में मुझे एक महीने का वक्त लग गया था। अब तो मुझे यहां का वड़ा पाव, गोभी मंचूरियन, पनीर टिक्का, बटर चिकन,मिसल पाव, डोसा और पानी पूरी काफी ज्यादा अच्छी लगती है।
अब इस लॉकडाउन पीरियड में मैं मैम के साथ मिलकर इंडियन फूड बनाना भी सीख रही हूं। इससे मॉरिशस जाकर मुझे जब भी इंडियन फूड की याद आएगी, मैं बना पाऊंगी।



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from Dainik Bhaskar

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