दवाओं के कच्चे माल के लिए हम चीन पर निर्भर, हर साल 65% से ज्यादा माल उसी से खरीदते हैं; देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में 4 चीन के

पहले कोरोनावायरसऔर फिर लद्दाख सीमा पर भारत-चीन की सेनाओं के बीच टकराव। इन दोनों ही वजहों से देश में एक बार फिर चीन विरोध की लहर शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर लगातार #boycottchineseproduct जैसे हैशटैग ट्रेंड हो रहे हैं लेकिन, आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2019 से लेकर फरवरी 2020 के बीच भारत-चीन के बीच 5 लाख 50 हजार करोड़ रुपए का कारोबार हुआ है।

ये आंकड़ा मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री का है। इसमें भी भारत ने तो सिर्फ 1.09 लाख करोड़ का सामान चीन को बेचा। लेकिन, चीन ने 4.40 लाख करोड़ रुपए का सामान भारत को बेच दिया। इस दौरान अमेरिका के बाद चीन हमारा दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी देश है।

1) जरूरी दवाइयों के लिए 65% से ज्यादा कच्चा माल चीन से आता है
पिछले साल 9 जुलाई को लोकसभा में केमिकल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बताया था कि भारत जरूरी दवाइयों को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है।उनके जवाब के मुताबिक, 2016-17 से लेकर 2018-19 तक दवाइयों के लिए जितना कच्चा माल दूसरे देश से भारत ने खरीदा था, उसमें से 65% अकेले चीन से आया था।

2018-19 में भारत ने कुल 3.56 अरब डॉलर यानी 26 हजार 700 करोड़ रुपए का कच्चा माल खरीदा था। इसमें से 2.40 अरब डॉलर माने 18 हजार करोड़ रुपए का कच्चा माल अकेले चीन से आया था।

2) 6 साल में चीन ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए
मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स के अधीन आने वाले डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में एफडीआई के जरिए सबसे ज्यादा निवेश सिंगापुर से आता है। सिंगापुर ने पिछले तीन साल में 2.94 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश किया है।

जबकि, भारत में सबसे ज्यादा निवेश करने वाले देशों में चीन 18वें नंबर पर है। चीन ने 2019-20 में 1 हजार 157 करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए हैं। वहीं, 2014-15 से लेकर 2019-20 के बीच इन 6 सालों में चीन की तरफ से 12 हजार 916 करोड़ रुपए एफडीआई से आए हैं।

3) स्टार्टअप में भी चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी
चीन का एफडीआई भले ही कम हो, लेकिन चीन की कई कंपनियों की हिस्सेदारी भारत के स्टार्टअप्स में है। पिछले कुछ सालों में देश में जितने बड़े स्टार्टअप शुरू हुए, उनमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी भी है।

थिंक टैंक गेटवे हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक, यूनिकॉर्न क्लब में शामिल भारत के 30 में से 18 स्टार्टअप में चीन का पैसा लगा है। यूनिकॉर्न क्लब में उन्हें शामिल किया जाता है, जिसकी नेटवर्थ 1 अरब डॉलर से ज्यादा होती है।

भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में इन्वेस्ट करने के तीन कारण हैं। पहला- हमारे देश में कोई ऐसी बड़ी कंपनी या ग्रुप स्टार्टअप में इन्वेस्ट नहीं करता है। दूसरा- जब कोई स्टार्टअप घाटे में जाता है, तो चीनी कंपनियां उसमें हिस्सेदारी खरीद लेती हैं और उसे सपोर्ट करती हैं। और तीसरा- यहां का बड़ा मार्केट।

गेटवे हाउस के मुताबिक, चीन की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा, टिकटॉक बनाने वाली बाइटडांस और टेक कंपनी टेंसेंट ही भारत के 92 स्टार्टअप को फंड करती हैं। इनमें पेटीएम, फ्लिपकार्ट, बाइजूस, ओला और ओयो जैसे स्टार्टअप भी शामिल हैं।

4) देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में 4 चीन के
रिसर्च फर्म काउंटरप्वाइंट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच भारतीय स्मार्टफोन मार्केट में चीनी कंपनियों की हिस्सेदारी 70% से भी ज्यादा है। भारत का स्मार्टफोन मार्केट करीब 2 लाख करोड़ रुपए का है।

देश के टॉप-5 स्मार्टफोन ब्रांड में से 4 चीन के हैं। सबसे ज्यादा 30% मार्केट शेयर श्याओमी का है। दूसरे नंबर पर 17% मार्केट शेयर के साथ वीवो है। टॉप-5 में सिर्फ सैमसंग ही है, जो दक्षिण कोरियाई कंपनी है। सैमसंग का मार्कट शेयर भारत में 16% है।

5) स्मार्टफोन ही नहीं, ऐप मार्केट में भी 40% हिस्सा चीनी ऐप्स का
भारतीय मार्केट में न सिर्फ चीनी कंपनियों के स्मार्टफोन, बल्कि चीनी ऐप्स भी काफी पॉपुलर हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय ऐप मार्केट में 40% तक हिस्सा अकेले चीनी ऐप्स का है।ऐसा चीन की वजह से ही हुआ है। चीन की कंपनियां सस्ते स्मार्टफोन भारत में लॉन्च करती हैं और भारतीयों को यही पसंद आते हैं। मार्केट रिसर्च फर्म टेकआर्क के मुताबिक, दिसंबर 2019 तक भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे।

ज्यादा स्मार्टफोन तो ज्यादा ऐप्स भी डाउनलोड। टिकटॉक, जिसको कई बार बैन करने की मांग उठती रही है, उसे 12 करोड़ से ज्यादा भारतीय चलाते हैं। कैमस्कैनर ऐप को भी 10 करोड़ भारतीय इस्तेमाल करते हैं।

6) हम जो कपड़े पहनते हैं, उसमें भी चीनी माल, टीवी देखते हैं, उसमें भी चीनी माल
चीन हमारी जरूरतों में किस तरह से समा चुका है, इसके कई उदाहरण हैं। इसी साल फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानी फिक्की की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, हमारी गाड़ियों में लगने वाले 27% ऑटो पार्ट्स चीन से आते हैं।

45% इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स चीन से आते हैं। जबकि, टीवी, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन और एसी बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले 70% कंपोनेंट भी चीन से ही आते हैं। इतना ही नहीं, हर साल देश में करीब साढ़े 3 हजार करोड़ रुपए का सिंथेटिक धागा, ढाई हजार करोड़ रुपए का सिंथेटिक कपड़ा और करीब हजार करोड़ रुपए के बटन, जिपर, हैंगर और नीडल्स जैसे सामान चीन से खरीदते हैं।



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from Dainik Bhaskar

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