‘लाख छुपाओ छुप न सकेगा, राज़ है इतना गहरा’। यह गीत कोरोना संकट के बीच सभी सरकारों की पोल खोलता है। कोरोना का संकट बढ़ चुका है, उससे निपटना सरकारों के बस की बात है नहीं। तो अब सरकारें और उनके दरबारी विशेषज्ञ आंकड़ों को दबाने में जुटे हुए हैं।
शुरुआत सरकारी आंकड़े से करते हैं। हम करीब 3 लाख पॉजिटिव केस के आंकड़े पर हैं। हर 16 दिन में संख्या दुगनी हो रही है। यानी 15 अगस्त आते-आते आंकड़ा 40 से 50 लाख के बीच पहुंच जाएगा। रफ्तार धीमी भी हुई तब भी अक्टूबर में आंकड़ा दो करोड़ पार कर सकता है। लेकिन सच्चाई सरकारी आंकड़ों से भी भयावह है।
कोरोना की लपेट में आए कई लोग डर के मारे या सरकारी तंत्र के चक्कर में टेस्ट ही नहीं करवा पा रहे। देश के प्रमुख वैज्ञानिकों के समूह ‘इंडियन साइंटिस्ट रिस्पांस टू कोविड-19’ (INDSCICOV) का मानना है कि वास्तव में देश में पॉजिटिव केस सरकारी आंकड़े से बीस या तीस गुना ज्यादा हैं। यानी अभी देश में पॉजिटिव केस की संख्या एक करोड़ के करीब होगी।
अब तो इस सच को सरकार ने भी अनायास ही स्वीकार कर लिया है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा देशभर में करवाए गए सेरोलॉजिकल सर्वेक्षण के अनुसार कोरोना के हॉटस्पॉट वाले इलाकों के बाहर, यानी सामान्य क्षेत्रों में, 30 अप्रैल तक 0.73% लोगों में कोरोना फैल चुका था।
जनसंख्या की दृष्टि से देखें तो इसका मतलब है कि अप्रैल के अंत तक 97 लाख लोग संक्रमित हो चुके थे। अभी इसमें दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, इंदौर जैसे हॉटस्पॉट शहरों के आंकड़े जारी नहीं हुए हैं। लेकिन इसी सर्वे के अपुष्ट आंकड़ों से पता लगा है कि इन शहरों में 15-30% तक संक्रमण फैल चुका है।
अगर 15% भी मानेंं तो हॉटस्पॉट के शहरों में अप्रैल के अंत तक 75 लाख लोग संक्रमित हो चुके थे। सामान्य और हॉटस्पॉट वाले दोनों इलाकों के आंकड़ों को जोड़ दें तो मई का महीना शुरू होने से पहले तक देश में 1.72 करोड़ व्यक्ति संक्रमित हो चुके थे। तब से अब तक पिछले डेढ़ महीने में संक्रमण आठ गुना से भी ज्यादा बढ़ा है।
अगर उसके हिसाब से बढ़ोतरी मान लें तो अब तक देश में लगभग 15 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके होंगे। मेरा अपना मानना है कि आईसीएमआर का आकलन वास्तविकता से कहीं ज्यादा है। अगर मुझे अनुमान लगाना हो तो मैं कहूंगा कि इस वक्त देश में कोरोना वायरस के शिकार लोगों की संख्या 60 से 90 लाख के बीच में है, जिनमें से अधिकांश को पता भी नहीं है कि वे इस संक्रमण के शिकार हैं।
हमारे देश में कोरोना इतना जानलेवा नहीं है जितना दुनिया के बाकी देशों में। अब सरकारी और दरबारी विशेषज्ञ इसी आंकड़े की आड़ ले रहे हैं। सच यह है कि इसमें सरकार का कोई कमाल नहीं है। या तो हमारे यहां आई कोरोना की प्रजाति कम घातक है, या हमारी गर्मी, बीसीजी के टीके या लक्कड़-पत्थर हज़म प्रतिरोध शक्ति के चलते बचाव हो रहा है।
अभी तक सरकारी आंकड़े के हिसाब से संक्रमित मरीजों में 3% से कम मौत की खबर है। वास्तव में संक्रमित सभी लोगों में यह संख्या 1% से भी कम होगी। फिर भी देश की जनसंख्या को देखते हुए यह कोई छोटी संख्या नहीं है। अगर रोकथाम के कदम ना उठाए गए तो इस वर्ष कोरोना से मरने वालों की गिनती कई लाख में पहुंच सकती है।
इस भयावह सच पर पर्दा डालने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें उतावली है। मरीजों की संख्या कम दिखे इसलिए टेस्ट ही कम करवाए जा रहे हैं। दिल्ली, चेन्नई और अहमदाबाद जैसे शहरों में तो मौत के आंकड़े भी छुपाए जाने के प्रमाण मिल चुके हैं।
जब बाकी सब तर्क फेल हो जाते हैं तो तरकश से आखिरी तीर निकाला जाता है और बताया जाता है कि अगर लॉकडाउन ना होता तो हालत इससे भी ज्यादा खराब होती। यह तर्क भ्रामक है। वैज्ञानिकों के समूह INDSCICOV के अनुसार लॉकडाउन के सभी चरणों के चलते कोई 8 से 32 हजार के बीच मौतें टाली गई।
यहां यह याद रखना जरूरी है कि लॉकडाउन यमराज से बचाता नहीं है, सिर्फ उसके आगमन को कुछ समय के लिए टालता है। इसलिए यह दावा झूठा है कि लॉकडाउन ने हजारों लाखों जिंदगी बचा लीं। लॉकडाउन ने केवल हमें मोहलत दी ताकि हम हजारों-लाखों जिंदगी बचाने की तैयारी कर सकें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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