चीन एलएसी का समाधान ही नहीं चाहता, भारत को असंतुलित रखने के लिए सीमित आक्रामकता दिखाता रहेगा

कोविड-19 अकेला खतरा नहीं है, जो इस साल भारत की सीमा पार कर आया है। भारत के रक्षा मंत्रालय की चेताने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ‘बड़ी संख्या’ में सैन्य दल तैनात किए हैं। अब तक ये अतिक्रमण दुनिया की सबसे लंबी और विवादित सीमा पर चार बिंदुओं पर हुआ है, जहां हजारों चीनी सैनिक सिक्किम और लद्दाख क्षेत्र तथा कश्मीर घाटी के उत्तर-पश्चिम के कुछ हिस्सों में आ गए।

भारत को चीन से 1962 के युद्ध में मिली हार के बावजूद, चीन और भारत लगभग आधी सदी से अपनी साझा सीमा पर विवाद का निपटारा होने तक असहज लेकिन साध्य व्यवस्था बनाए रखने में सफल रहे हैं। 1976 के बाद से एक भी गोली नहीं दागी गई है।

दोनों देश एलएसी कहां है, इस बारे में अपने अलग-अलग दृष्टिकोणों का हवाला देते हुए एक-दूसरे की सेनाओं के मूवमेंट को कमतर बताते रहे हैं। जबकि एलएसी का कभी आधिकारिक सीमांकन हुआ ही नहीं। इन चिंताजनक परिस्थितियों के कारण हर साल एलएसी पर करीब 400 बार गतिरोध होता है, और सभी मामले जल्दी शांत हो जाते हैं। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।

ऐसा बताया गया कि चीन उन क्षेत्रों तक पहुंच गया, जिन्हें वह खुद पारंपरिक रूप से भारत का हिस्सा मानता था। पिछले महीने ही भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दो बार हाथापाई हुई, दर्जनभर सैनिक घायल हुए।हालांकि दोनों सेनाओं के बीच 2017 में भूटान के डोकलाम में भी ऐसा आमना-सामना हुआ था, लेकिन वह तीसरा देश था।

इस बार भारत के पास चीन की घुसपैठ को सीधी आक्रमकता समझनेे के सभी कारण हैं। यह सच है कि डोकलाम मामला चीन के वापस जाने पर खत्म हो गया था और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पहली भारत यात्रा के दौरान 2014 में लद्दाख में ऐसा ही हुआ था। लेकिन 2020 का चीन ज्यादा मजबूत है और अपनी शक्ति दिखाना चाहता है।

अब कुछ हिस्सों से चीनी सेनाओं के हटने की खबरें आ रही हैं। लेकिन फिर भी दुनिया ध्यान दे रही है। चीनी अधिकारियों के इस बयान कि स्थिति ‘स्थिर और नियंत्रित है’ के बावजूद यूएस सेक्रेटरी माइक पॉम्पिओ और रूस ने चिंता जताई है। लेकिन समस्या यह नहीं है कि चीन किसी युद्ध की या सैन्य अभियान की योजना बना रहा है। बल्कि वह ‘सलामी टैक्टिक’ अपना रहा है।

यानी छोटी सैन्य घुसपैठ जो भारत पर छोटे स्तर पर सैन्य असफलताएं थोपे। उसका यह तरीका नया नहीं है। चीन यह तर्क दे सकता है कि उसे एलएसी के पास भारत के आधारभूत सुविधाएं संबंधी (इंफ्रास्ट्रक्चर) निर्माण से उकसाया गया था। लेकिन ये परियोजनाएं बहुत समय से लंबित थीं।

दो साल पहले, भारतीय संसद की विदेश मामलों की कमेटी (जिसका तब मैं अध्यक्ष था) ने सीमा इलाकों का दौरा किया था और पाया था कि वहां इंफ्रास्ट्रक्चर बेहद अपर्याप्त था। वहीं चीन ने इस बीच एलएसी की अपनी तरफ पर ऑल-वेदर सड़कें, रेलवे लाइन और यहां तक कि एयरपोर्ट्स भी बना लिए।

भारत-चीन के संबंध बेहद जटिल रहे हैं। इसके 1962 युद्ध के घाव कभी नहीं भरे, फिर भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, हालांकि यह चीन के पक्ष में ही ज्यादा है। इसके अलावा चीन पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों का इस्तेमाल भारत को भटकाने और अपने ही हिस्से में उलझाए रखने के लिए करता है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर को शी अपने बड़ी उपलब्धि मानते हैं और पाक अधिकृत कश्मीर से चीन की सड़क योजनाएं गुजरती हैं, जिसे चीन ने भी विवादित क्षेत्र के रूप में मान्यता दी है। चीन भारतीय इलाके में अपने दावों को भी दोहराता रहता है, खासतौर पर अरुणाचल प्रदेश में।

इस पृष्ठभूमि में मौजूदा गतिरोध को उसकी भारत को नियंत्रित रखने की बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। शी के नेतृत्व में चीन शायद खुलकर दिखाना चाहता कि वह क्षेत्र में प्रबल शक्ति है। वह शायद भारतीय सीमा पर सख्त रवैया दिखाकर दुनिया, खासतौर पर अमेरिका को दिखाना चाहता है कि वह डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों से नहीं डरता है।

अभी के लिए भारतीय अधिकारियों ने घोषणा की है कि चीन के साथ उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता में इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों पक्ष ‘शांतिपूर्ण ढंग से सीमा क्षेत्रों में स्थिति को द्विपक्षीय समझौतों के साथ सुलझाएंगे।’ लेकिन इस गतिरोध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि द्विपक्षीय समझौते क्या होते हैं, इसे लेकर दोनों पक्षों की समझ अलग-अलग है। यह देखना होगा कि क्या चीन वाकई में विवादित इलाकों से सेना हटाएगा। स्पष्टरूप से भारत-चीन को स्थायी सीमा समझौते को अंतिम रूप देना होगा।

चीन तर्क देता रहा है कि औपचारिक सीमा समाधान को भावी पीढ़ी पर छोड़ देना ही बेहतर है, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि हर गुजरते साल के साथ उसकी भूराजनैतिक शक्ति बढ़ती जा रही है। चीन को लगता है कि समाधान जितनी देर से होगा, उसे मनचाही सीमा मिलने की उतनी ज्यादा संभावना है। इस बीच वह भारत को असंतुलित बनाए रखने के लिए सीमित आक्रमकता दिखाता रहेगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


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