भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अपने अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह का कार्यकाल बढ़ाने और बोर्ड के संविधान में संशोधन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर आज फैसला आना है। पिछले साल अक्टूबर में पदभार संभालने वाले गांगुली का जुलाई और शाह का जून में कार्यकाल खत्म हो रहा है। दोनों को तीन साल के अनिवार्य ब्रेक (कूलिंग ऑफ पीरियड) पर जाना होगा।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग के याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा बीसीसीआई के सपोर्ट में आ गए हैं। उन्होंने कहा कि गांगुली और जय शाह के कूलिंग ऑफ पीरियड को हटाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में उनका वकील विरोध नहीं करेगा। बिहार क्रिकेट संघ (सीएबी) के सचिव आदित्य 2013 फिक्सिंग मामले के याचिकाकर्ता हैं।
सीओए ने बनाया था कूलिंग ऑफ पीरियड का नियम
प्रशासकों की समिति (सीओए) ने नियम बनाया था कि कोई भी व्यक्ति राज्य क्रिकेट संघ या बीसीसीआई में लगातार 6 साल किसी भी पद पर बना रहता है, तो उसे 3 साल के कूलिंग ऑफ पीरियड में जाना होगा। इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी दी थी।
9 महीने के लिए अध्यक्ष पद पर हैं गांगुली
गांगुली बंगाल क्रिकेट बोर्ड (सीएबी) के 5 साल 3 महीने तक अध्यक्ष रह चुके हैं। इस लिहाज से उनके पास बीसीसीआई अध्यक्ष के तौर पर 9 महीने का कार्यकाल ही बचा था। जय शाह भी गुजरात क्रिकेट संघ में सचिव रह चुके हैं। अब कूलिंग ऑफ पीरियड नियम में छूट के बाद गांगुली और शाह अपने 3 साल का कार्यकाल पूरा कर सकें।
बीसीसीआई की एजीएम ने किया था संशोधन
सुप्रीम कोर्ट यह बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष अरुण धूमल ने याचिका दायर की है। उन्होंने याचिका में कहा, ‘‘बीसीसीआई ने पिछले साल हुई वार्षिक साधारण सभा (एजीएम) में 9 अगस्त 2018 से लागू कूलिंग ऑफ पीरियड में जाने के नियम में संशोधन कर अपने पदाधिकारियों के कार्यकाल को बढ़ाने की स्वीकृति दे दी थी।’’
बोर्ड के संशोधन के मुताबिक, गांगुली और शाह पर कूलिंग ऑफ पीरियड पर जाने का नियम तभी लागू होगा, जब वे बीसीसीआई में लगातार 6 साल काम पूरा कर लेते हैं। राज्य क्रिकेट संघ में किए गए काम को बीसीसीआई अधिकारियों के काम में नहीं जोड़ा जाएगा।
सीओए के पास नहीं था क्रिकेट प्रशासन का अनुभव
बीसीसीआई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि मसौदा (संविधान) उन व्यक्तियों की ओर तैयार किया गया था, जिनके पास इस त्रि-स्तरीय संरचना के कामकाज का जमीनी स्तर का अनुभव नहीं था, न ही उन्हें क्रिकेट प्रशासन का अनुभव था। वहीं, अनुभवी लोगों को प्रशासन से दूर करने से कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से क्रिकेट को खामियाजा भुगतना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी लेने की अनिवार्यता खत्म हो
साथ ही यह भी तर्क दिया गया कि बीसीसीआई एक ऑटोनॉमस बॉडी है। इसके पास प्रशासनिक अधिकार होता है। इसके तहत वह अपने संविधान में बदलाव कर सकता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी लेने की अनिवार्यता को खत्म किया जाए। ताकि वह संविधान में अपने सदस्यों की तीन चौथाई के मत से संविधान में संशोधन कर सके।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar
0 Comments