हर साल औसतन भारतीय सेना के 111 जवान सीमा पर दुश्मन की गोलियों से शहीद हो जाते हैं...मगर पिछले 6 साल में 24 जवान अपनी ही सेना के खराब गोला-बारूद के कारण जान गंवा बैठे। जबकि 131 जवान घायल हुए, इनमें कई हाथ-पैर तक खो चुके हैं। यह खुलासा ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) से खरीदे गए गोला-बारूद व अन्य सामान पर सेना के एक आंतरिक आकलन में हुआ है।
ओएफबी, दुनिया के सबसे पुराने सरकारी रक्षा उत्पादन बोर्डों में से एक है। रक्षा मंत्रालय को सौंपी गई इस आंतरिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ओएफबी से खरीदे गए गोला-बारूद की गुणवत्ता खराब थी, इसकी वजह से न सिर्फ हादसे हुए बल्कि 5 साल में 960 करोड़ रुपए का आयुध अपनी तय शेल्फ लाइफ से पहले ही खराब हो गया।
सेना का आंतरिक आंकलन...ओएफबी के रसायनों की क्वालिटी व मिक्सिंग सही न होने से तय समय से पहले ही खराब हो गया 960 करोड़ का गोला-बारूद
सेना के अधिकारियों ने बताया कि हर प्रोडक्ट की तरह गोला-बारूद की शेल्फ लाइफ यानी आयु तय होती है। शेल्फ लाइफ पूरी होने के बाद इसे डिस्पोज ऑफ कर दिया जाता हैै। आयुध की आयु इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें इस्तेमाल रसायन की क्वालिटी कैसी है और इसकी मिक्सिंग कैसे हुई है।
ओएफबी में रसायनों की मिक्सिंग ऑटोमेटेड नहीं है। इसीलिए यह शेल्फ लाइफ भी पूरी नहीं कर पाते हैं। इसी वजह से हादसे भी होते हैं। रिपोर्ट में जिन आयुध पर सवाल उठाया गया है उनमें 25 मिमी. एयर डिफेंस शेल्स, आर्टिलरी शेल्स और 125 मिमी. टैंक शेल्स के साथ ही इंफेंट्री की असॉल्ट राइफल्स में इस्तेमाल होने वाली बुलेट्स भी हैं।
150 की कैप 500 में देता है ओएफबी, सेना बाजार दर पर वर्दी खरीदती तो छह साल में 480 करोड़ बच जाते
ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड से मिलने वाली जवानों की वर्दी में सेना बड़ा घाटा उठा रही है। आंतरिक मूल्यांकन के अनुसार जो कॉम्बैट ड्रेस मार्केट में 1800 रुपये से कम में मिल सकती है वह 3300 रु में खरीदी जाती है। कैप 500 रुपये में खरीदी जाती है जो 150 रुपये से कम मिल रही है।
ओएफबी से खरीदी एक जवान की पूरी वर्दी की कुल लागत 17950 रुपये है। इसकी बाजार में कीमत 9400 रुपये है। यानी ओएफबी हर जवान की वर्दी पर 8550 रुपए ज्यादा ले रहा है। 12 लाख जवानों के लिए साल में महज चार वर्दियों का हिसाब से भी जोड़ा जाए तो 480 करोड़ रुपये का अंतर आता है।
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from Dainik Bhaskar
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