बीमारी का लक्षण हो सकती हैं कोरोना से सावधानियां, गतिविधियों पर नजर रखें पैरेंट्स; एक्सपर्ट्स की 5 सलाह होंगी मददगार

(जेनी मार्डर). कोरोनावायरस महामारी ने हमारी सफाई की आदतों को और गंभीर बना दिया है। अब हम किसी भी चीज को साफ रखने की ज्यादा कोशिश में लगे रहते हैं। फिलहाल हाथ धोना, सतह को साफ करना जैसी आदतें हमारे लिए सामान्य हैं, लेकिन मानसिक बीमारी ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) से जूझ रहे लोगों के लिए यही आदतें मुश्किलें पैदा कर रही हैं। इसका ज्यादा बुरा असर बच्चों पर पड़ा है।

ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिससे जूझ रहा व्यक्ति किसी डर या चिंता के कारण एक ही चीज को बार-बार दोहराता है। जैसे- लगातार हाथ धोना, किसी चीज की बार-बार जांच करना, चीजों को कई बार जमाना। ओसीडी में दो चीजें होती हैं- ऑबसेशन और कंपल्शन। ऑबसेशन ऐसे विचार, इच्छा, एहसास होते हैं, जिन पर व्यक्ति का काबू नहीं होता। वहीं, कंपल्शन किसी भी चीज को बार-बार दोहराने को कहा जाता है।

बच्चों में नजर आ रहे हैं ओसीडी के लक्षण
पैरेंट्स के लिए बच्चों के बदले हुए व्यवहार का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। उन्हें पता करने में मुश्किल होती है कि बच्चा सुरक्षा के लिए ऐसा कर रहा है या किसी मजबूरी में। मई में 15 साल का एक लड़का लंबे समय बाद अपने दोस्त से 6 फीट की दूरी से मिला। बच्चों के साइकोलॉजिस्ट जॉन डफी के मुताबिक, जब बच्चा घर लौटकर आया तो उसके मन में वायरस को लेकर अलग ही डर था। उसने हाथों को कई बार धोना शुरू कर दिया, किसी भी सतह को छूना बंद कर दिया। डॉक्टर डफी ने कहा कि उनके पास ओसीडी जैसे लक्षणों से जूझ रहे मरीजों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है।

माता-पिता इन तरीकों से अपने बच्चों के व्यवहार में फर्क का पता कर सकते हैं

बच्चों के डर को जानने की कोशिश करें
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रोफेसर और चाइल्ड ओसीडी एन्जायटी एंड टिक डिसऑर्डर्स प्रोग्राम की तारा पेरिस कहती हैं कि सतर्क रहना समझ आता है, लेकिन ओसीडी में आप अजीब तरह से डरे हुए होते हैं। पैरेंट्स को अपने बच्चे के व्यवहार को मॉनिटर करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या अलग हो रहा है।

उदाहरण के लिए, किसी सार्वजनिक जगह से आने के बाद सीडीसी साबुन और पानी से 20 सैकेंड तक हाथ धोने की सलाह देता है। डॉक्टर पेरिस ने कहा "अगर कोई एक दिन में 20 से 30 बार अपने हाथ धो रहा है या हाथ धोते वक्त 15 से 20 मिनट बाथरूम में गुजार रहा है, तो वो जरूरत से ज्यादा चिंतित है। अगर उसका व्यवहार परिवार, दोस्ती और बच्चे के स्कूल के काम को प्रभावित कर रहा है तो यह खतरे का संकेत है।"

पैरेंट्स अपनी सोच पर भरोसा करें
डॉक्टर डफी ने कहा कि एक परेशानी की बात यह है कि किसी व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार का पता चलना मुश्किल है। उन्होंने कहा "मैं माता-पिता को खुद पर भरोसा रखने की सलाह देता हूं। अगर आपका बच्चा भावनात्मक रूप से कमजोर या आपकी उम्मीदों से अलग नजर आ रहा है, तो किसी एक्सपर्ट की सलाह लें।"

इलाज बेहद जरूरी है
हल्के से लेकर मध्यम ओसीडी वाले मरीजों के लिए एक्सपोजर रिस्पॉन्स प्रिवेंशन के साथ व्यवहार थैरेपी सबसे ज्यादा प्रभावी होगी। इसके तहत मरीज को ऐसी चीज से परिचित कराना होगा, जिससे वह डरता है। बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन में प्रोफेसर और ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के एक्सपर्ट एरिक स्टॉर्च ने कहा कि यह इलाज 75% तक मामलों में लक्षणों को कम करने में मददगार है। ज्यादा गंभीर मामलों में थैरेपीज के साथ दवाइयां भी दी जा सकती हैं।

18 साल की लारा कोएलिक्कर 8 साल की उम्र से ही ओसीडी का इलाज करा रही हैं। उन्होंने कहा कि एक्सपोजर थैरेपी के विशेषज्ञ से मिलने से पहले वे 3 साल तक गंभीर लक्षणों से जूझ रहीं थीं। इस ट्रीटमेंट ने उन्हें लक्षणों को संभालना सिखाया।

इंटरनेट के जरिए थैरेपी लें
कई थैरेपिस्ट वीडियो कॉल के जरिए भी मरीजों का इलाज कर रहे हैं। ब्रेडले हॉस्पिटल के पीडियाट्रिक एन्जायटी रिसर्च सेंटर में रिसर्च और ट्रेनिंग की डायरेक्टर जैनिफर फ्रीमैन ने कहा कि इंटरनेट के जरिए मरीज को घर में ही एक्सपोजर ट्रीटमेंट देना मददगार हो सकता है। उदाहरण के लिए बच्चों को अपने घर के सदस्य, पालतू जानवर या घर के किसी हिस्से से डर लगता है। उन्होंने कहा "जूम पर मैं मरीज से कह सकती हूं कि क्या आप मुझे अपना रूम दिखा सकते हैं? क्या आप मुझे दिखा सकते हैं कि वो काउच कौन सा है, जिससे आप डरते हैं, क्या आपको लगता है कि आप वहां बैठ सकते हैं।"

बच्चों के अहसासों को समझें माता-पिता
डॉक्टर फ्रीमैन ने कहा कि थैरेपी के अलावा बच्चों की बातों को सुनना पैरेंट्स की प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा "बच्चे जो भी महसूस कर रहे हैं उन्हें मानें और मुश्किल बातचीत करने के लिए तैयार रहें, ताकि हमारे अंदर का तनाव दूर हो। बच्चों से यह नहीं कहना चाहिए कि उन्हें दुखी या चिंतित होने की जरूरत नहीं है।"



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from Dainik Bhaskar

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