सबसे पहले एक चिट्ठी पढ़िए। ये पत्र बीती 14 तारीख को उत्तर प्रदेश के अनूपशहर की रहने वाली मधु शर्मा ने जिला प्रशासन को लिखा है।
सेवा में,
श्रीमान सदस्य महोदय,
बाल कल्याण समिति, बुलंदशहर
विषय: बाल विवाह को रोकने हेतु
महोदय,
विश्वसनीय सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि कुमारी पिंकी (उम्र 15 वर्ष, गांव खुशहालगढ़, पिता का नाम स्वर्गीय रामवतार) और उसकी छोटी बहन हेमलता (उम्र 14 साल) का विवाह किया जा रहा है। पिंकी और हेमलता विवाह के लिए अपरिपक्व हैं। आपसे अनुरोध है कि उनके उज्ज्वल भविष्य हेतु विवाह रुकवाने और उचित कार्रवाई करने की कृपा करें।’
इसी दिन मधु ने कुल तीन लड़कियों के बाल विवाह की पुख्ता जानकारी मिलने पर स्थानीय प्रशासन को चेताया है। ये पहली बार नहीं है जब मधु शर्मा को ऐसे पत्र लिखने पड़ रहे हों। लॉकडाउन के दौरान वे अनूपशहर तहसील में ही अपनी दखल से कई बाल विवाह रुकवा चुकी हैं।
अनूपशहर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले की एक तहसील है। यहां ‘परदादा परदादी एजुकेशन सोसाइटी’ नाम का एक एनजीओ है, जो गरीब बच्चियों की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करता है। मधु इसी एनजीओ के साथ पिछले 12 सालों से काम कर रही हैं।
मधु बताती हैं, ‘लॉकडाउन के दौरान बाल विवाहों में काफी तेजी आई है। समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी लड़कियों को बोझ समझता है। ऐसे में इस वर्ग के लिए लॉकडाउन का ये समय इस बोझ को उतारने के लिए मुफीद बन गया है। इस छोटी-सी तहसील में ही हम आठ से ज्यादा बाल विवाह रोकने में सफल रहे हैं। पूरे प्रदेश और पूरे देश में इस दौरान कितने बाल विवाह हुए होंगे इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं।’
जिन बच्चियों की शादियां रुकवाने में मधु और उनकी टीम सफल रही है, उनमें से अधिकतर बच्चियां उनके एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में पढ़ती हैं। ऐसे में ये बच्चियां स्कूल के सम्पर्क में थीं लिहाजा जबरन शादी करवाए जाने पर इन्होंने अपने टीचर से संपर्क किया और बाल विवाह से बच पाई।
स्वाति नाम की ऐसी ही एक बच्ची अपनी आपबीती बताते हुए कहती हैं, ‘हम चार बहनें हैं। मेरी बड़ी बहन अभी 18 साल की हुई है और मेरी उम्र 16 साल है। मेरे घरवाले मेरी बड़ी बहन के साथ ही मेरी भी शादी करवा रहे थे। मुझे ये पता नहीं था। मुझे बताया गया कि हम लोग बुलंदशहर मौसी के घर जा रहे हैं। लेकिन, वहां जाकर मालूम पड़ा कि घरवालों ने मेरी बहन और मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है।
मैं शादी नहीं करना चाहती थी। मुझे अभी आगे पढ़ना है। मैंने घरवालों से ये बात कही लेकिन उन्होंने मेरी नहीं सुनी। शादी के कार्ड छप गए और एक ही कार्ड पर हम दोनों बहनों की शादी का ब्यौरा लिखा गया। तब मैंने मधु मैडम को फोन किया और कहा कि मैडम मुझे बचा लीजिए मेरे घरवाले मेरी जबरदस्ती शादी करवा रहे हैं।’
स्वाति का फोन आने के बाद मधु शर्मा ने पहले उसके घरवालों से संपर्क किया और उन्हें समझाने की कोशिश की। मधु शर्मा कहती हैं, ‘मैं तीन बार इस बच्ची के घर गई। उन्हें समझाया कि स्वाति अभी छोटी है और शादी के लिए तैयार नहीं है।
वे लोग जब नहीं माने तो मैंने उन्हें ये भी कहा कि इसकी शादी करवाना कानूनन अपराध है, आप लोगों को जेल हो सकती है। ये कहने पर वे मुझे धमकी देने लगे। मुझे ये तक कहा गया कि तू बीच में आई तो तुझे गोली मार देंगे। आखिर में हमें पुलिस की मदद लेनी पड़ी और तब ये शादी रुक सकी।’
पुलिस के हस्तक्षेप के बाद भी स्वाति की शादी रुकवाना आसान नहीं था। स्वाति कहती हैं, ‘मधु मैडम से बात होने के बाद पुलिस हमारे घर आई और मम्मी-पापा को कहा कि मेरी शादी नहीं हो सकती। पुलिस के सामने तो मम्मी-पापा मान गए, लेकिन बाद में मैंने मम्मी को कहते सुना कि बड़ी बहन के साथ ही शादी के वक्त वे मुझे भी फेरों में बैठा देंगे। एक बार शादी हो जाए तो फिर कोई क्या कर लेगा।’
ये सुनने के बाद स्वाति ने घबरा कर दोबारा मधु शर्मा को फोन लगाया और पूरी बात बताई। इसके बाद स्वाति की बहन की शादी पुलिस की मौजूदगी और उनकी उनकी निगरानी में ही हुई। मधु शर्मा कहती हैं, ‘इस तरह के मामलों में अक्सर ज्यादा परेशानी आती है जब हमें शादी के बारे में डर से पता चलता है।
क्योंकि तब तक लड़की के घरवाले तैयारी पूरी कर चुके होते हैं, लड़के वालों से बात पक्की हो चुकी होती है, कार्ड छप चुके होते हैं और तब शादी रुकने को वो लोग अपनी बेइज्जती मान लेने हैं। इसकी बजाय अगर हमें पहले शादी की खबर मिल जाती है तो चीजें थोड़ा आसानी से सुलझ जाती हैं।
कई बार हमारे समझाने से ही बात बन जाती है और पुलिस की नौबत ही नहीं आती।’ बंगर-तुरई गांव की रहने वाली 15 साल की नेहा के मामले में ऐसा ही कुछ हुआ। नेहा की शादी रुकवाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप नहीं करना पड़ा लेकिन नेहा ने खुद इसके लिए कठिन लड़ाई लड़ी है।
नेहा के पिता ने जब उसका रिश्ता तय किया तो नेहा ने इसका जमकर विरोध किया। नेहा की मां कहती हैं, ‘इसने आठ दिनों तक खाना-पीना छोड़ दिया था। पूरा-पूरा दिन रोती रहती थी और कहती थी मुझे किसी हाल में शादी नहीं करनी। मैं भी इसके साथ बहुत परेशान थी। फिर इसने अपनी मैडम को फोन किया और उन्होंने ही इसके पिता को समझाया।’
नेहा की शादी फिलहाल रोक देने को तो उसके घरवाले तैयार हो गए लेकिन इसकी कसक नेहा के पिता बीर सिंह को अब भी है। वे कहते हैं, ‘नेहा की शादी का हमने सोचा नहीं था। लेकिन एक अच्छा रिश्ता आ गया था और लॉकडाउन में खर्चा भी कम होना था इसलिए हम शादी करवा रहे थे।
फिर मैडम ने आकर समझाया और शादी के काम में पहले ही बाधा आ गई तो हमने ये शादी रोक दी। लेकिन, ऐसे कब तक रुकेंगे। आज नहीं तो कल इसकी शादी करनी ही है।’
बीर सिंह ने अपनी पहली बेटी शादी आज से चार साल पहले कर दी थी। उस वक्त उस बच्ची की उम्र भी 16 साल थी। उस शादी के लिए बीर सिंह ने दो लाख का कर्ज लिया था, जो वे आज तक नहीं उतार पाए हैं। मामूली मजदूरी करने वाले बीर सिंह के लिए यह रकम बहुत बड़ी है और अभी प्रीति की शादी में होने वाला खर्च उनके सामने पहाड़ जैसी चुनौती बनकर खड़ा है।
बीर सिंह कहते हैं, ‘इसकी शादी में कम से कम ढाई लाख खर्च होंगे अगर लड़के वालों ने बाइक नहीं मांगी। बाइक भी देनी पड़ी तो तीन लाख से ऊपर खर्चा होगा। लॉकडाउन में शादी हो जाती तो कम से कम 70-80 हजार रुपए का खर्चा बच जाता। ये बात बाहर वाले नहीं समझ सकते क्योंकि पैसा तो हमें ही जुटाना है। 80 हजार बहुत बड़ी रकम होती है।’
बीर सिंह की यह सोच अकेले उनकी ही चिंता नहीं है। ग्रामीण समाज में आर्थिक तंगी से जूझ रहे लाखों परिवारों का दर्द लगभग बीर सिंह जैसा ही है। मधु शर्मा कहती हैं, ‘लॉकडाउन के दौरान बहुत बड़े वर्ग पर आर्थिक मार पड़ी है। ये लोग पहले ही बेहद सीमित संसाधनों में काम चलाते हैं। ऊपर से लॉकडाउन ने इनकी कमर तोड़ दी है।
बेटी की शादी इन लोगों के लिए जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है। उसके लिए जो पैसा ये लोग कई सालों में जुटा पाते हैं वो पैसा इस बार कई परिवारों को लॉकडाउन के दौरान खर्च करना पड़ा। यह भी एक कारण है कि ये लोग कम उम्र में ही बेटी की शादी से मुक्त होना चाहते हैं और लॉकडाउन इनके लिए एक मौका बन गया है।’
महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने हाल ही में राज्य सभा में कहा है कि ‘लॉकडाउन के दौरान बाल विवाहों में कोई तेजी आई हो, ऐसा कोई भी डेटा फिलहाल उपलब्ध नहीं है।’ उन्होंने ये भी कहा है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 देश में लागू है और इसकी जागरूकता के लिए सरकार लगातार काम कर रही है। उनका कहना है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाएं भी बाल विवाह कम करने में मददगार साबित हो रही है।
दूसरी तरफ चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन नामक एनजीओ के आंकड़े बताते हैं कि इस साल जून में जैसे ही लॉकडाउन में ढील शुरू हुई, बाल विवाह के मामलों में तेजी दर्ज की गई है। फाउंडेशन के अनुसार इस साल जून और जुलाई में बीते साल की तुलना में 17 फीसदी ज्यादा शिकायतें दर्ज की गई है।
यहां ये समझना भी महत्वपूर्ण है कि फाउंडेशन सिर्फ उन्हीं मामलों को अपने डेटा में शामिल कर पाता है, जहां बाल विवाह रुकवाने के लिए कोई शिकायत दर्ज हुई हो। जबकि ग्रामीण भारत में बाल विवाह के मामले अक्सर बिना किसी शिकायत के ही घटित होते रहते हैं।
बीर सिंह कहते हैं, ‘हमारे समाज में 15-16 साल की लड़की की शादी कोई नई बात नहीं है। लॉकडाउन में ये इसलिए भी ज्यादा हो रही हैं कि इसमें चार पैसे बच रहे हैं। पड़ोस में ही अभी 12 साल की लड़की की शादी हुई है। कोई पुलिस नहीं आई और कोई शिकायत नहीं हुई। शिकायत तो कभी सौ में से एक मामले में होती है, वरना शादी आराम से हो जाती है। मेरी भी जब शादी हुई थी तो मेरी बीवी 15 साल की ही थी।’
अनूपशहर में रहने वाली स्वाति और नेहा जैसी बच्चियों की क़िस्मत अच्छी रही कि उनके पास कोई ऐसा था जिसने उन्हें बाल विवाह से बचा लिया। लेकिन, देश के अधिकतर बच्चों के पास यह मौका भी नहीं होता। यूनिसेफ के आंकड़ों बताते हैं कि दुनिया भर में जो बाल विवाह होते हैं, उसके एक तिहाई मामले सिर्फ भारत से ही होते हैं। कुछ आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल 15 लाख से ज्यादा नाबालिग लड़कियों की शादी कर दी जाती है। इस साल लॉकडाउन के चलते यह आंकड़ा और भी आगे निकलता दिखाई पड़ता है।
(इस रिपोर्ट में सभी नाबालिग बच्चियों के बदले हुए नाम लिखे गए हैं।)
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