सुमित व्यास छह साल पहले से वेब सीरीज करते आ रहे हैं, तब उनको वेब सीरीज की इतनी ताकत का अंदाजा नहीं था। हाल ही में उनकी एक नई वेब सीरीज 'वकालत फ्रॉम होम' अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम हुई है। जिसे लॉक डाउन में शूट किया था। इसके अलावा कुछ दिन पहले ही वो एक बेटे के पिता भी बने हैं। इस मौके पर उन्होंने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ से जुड़ी खास बातें दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में शेयर कीं।
लॉक डाउन में वेब सीरीज शूट करने की क्या सुविधा-असुविधा रही?
सुमित- लॉक डाउन के दौरान फिजूल की चीजों में दिमाग लगाने के बजाय हमने यह कहानी कह दी, यह सबसे बड़ा अचीवमेंट रहा। दिन के चार-पांच घंटे हम लोग कहानी पर काम करते थे, रोजाना रिहर्सल करते थे। वक्त का सही इस्तेमाल हुआ। असुविधा वास्तव में कुछ भी नहीं रही और देखा जाए तो हमने एक नया माध्यम डिस्कवर किया। ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था कि जूम पर रिकॉर्डिंग करके सीरीज बनाई जाए।
लॉक डाउन में सीरीज बनाने का ख्याल कैसे आया?
सुमित- इसके राइटर ने अखबार में पढ़ा कि लॉक डाउन के दौरान कोर्ट की प्रोसेस चालू रहेगी। कोई डिवोर्स केस था, उसकी हियरिंग जूम पर हो रही थी। उन्हें शो के लिए यह बहुत इंटरेस्टिंग आइडिया लगा। यहीं से 'वकालत फ्रॉम होम' की शुरुआत हुई।
इसमें किस तरह की वकालत कर रहे हैं?
सुमित- असल में वकालत नहीं कर रहा हूं। मैं जो किरदार प्ले कर रहा हूं, उसका डिवोर्स चल रहा है। उनका नाम है- सचिन कोहली। सचिन मुंबई में एक्टिंग फील्ड में स्ट्रगलिंग कर रहा है। वो मान रहा है कि अभी तक उसका एक्टिंग में कुछ खास नहीं हुआ है। उसकी कोशिश जारी है। वो साथ ही साथ साइड बिजनेस करता है, जिससे उसका खर्चा चलता है। लेकिन बीवी को बताता नहीं है कि पैसे कहां से आ रहे हैं। एक दिन वो किसी सिचुएशन में फंस जाता है, तब कई दिनों तक घर नहीं आता है। फिर तो बीवी का शक गहरा हो जाता है। दोनों के बीच झगड़े हो जाते हैं और बीवी कोर्ट में केस फाइल कर देती है। यह पूरी कहानी डिवोर्स केस पर है।
आपका किरदार बीवी से बातें छिपाता है। रियल लाइफ में कितनी बातें पत्नी एकता से छिपाते और कितनी बताते हैं?
सुमित- मैं बहुत ज्यादा बातें नहीं छिपाता हूं। मेरी प्रॉब्लम यह है कि मेरे पेट में बहुत देर तक बात टिकती नहीं है। मुझसे अगर कहा जाता है कि इस बात को किसी से नहीं कहना है तो वो बात हंड्रेड पर्सेंट मेरे मुंह से निकल ही जाएगी। मैं छिपाना चाहता हूं, पर छिपा नहीं पाता। खुद ही एक-दो दिन में बोल देता हूं।
जीवन में वेद व्यास के आने से किस तरह से परिवर्तन आया है?
सुमित- कह सकते हैं कि हमारी विचारधारा में कुछ परिवर्तन जरूर आया है। सबके साथ कुछ लेवल पर ऐसा होता होगा कि आपको अपना बच्चा सबसे प्यारा लगता है। पहले ऐसा लगता था कि इतना नाम कमा लूंगा, पैसे कमा लूंगा, इतनी फिल्में कर लूंगा, लेकिन जब जीवन में बच्चा आ जाता है, तब लगता है कि इसके अलावा और भी जिम्मेदारी हैं। जीवन की इच्छाएं सेकंड स्टेज पर चली जाती हैं और बच्चा पहला स्थान ले लेता है।
कहते हैं जीवन में बच्चा आने के बाद बीवी का प्यार भी बंट जाता है। आपका क्या कहना है?
सुमित- बिल्कुल बंट गया है। अभी बीवी बच्चे के साथ उसके ननिहाल जम्मू गई हुई है। मुझे नहीं लगता है कि अभी मेरी बहुत ज्यादा याद उन्हें आ रही होगी, क्योंकि उनके आसपास बच्चा और मायके वाले हैं। मैं भी थोड़ा रुका हुआ हूं कि वो नहीं है तो लोगों के साथ मीटिंग कर पा रहा हूं, जबकि वो था, तब किसी से मिल नहीं पाता था। डर लगता था कि बच्चे को कहीं वायरस न लग जाए।
न्यू नॉर्मल में किस तरह से एक्टिव हुए हैं?
सुमित- मैं पहले से ही एक्टिव हूं, क्योंकि जहां मैं रहता हूं वहां पर सूनसान रास्ता है। वहां पर अर्ली मॉर्निंग पैदल चलता था, जब कोई आता-जाता नहीं था। जूम पर कई सारी मीटिंग करता रहता था। लिखता भी हूं तो साथ ही साथ उसका भी काम चल ही रहा है। राइटिंग फ्रंट पर अभी एक फिल्म है, उसे डेवलप कर रहा हूं। वो अभी अर्ली स्टेज पर है। डेवलप हो जाए तो उस बारे में ज्यादा बात कर पाऊंगा।
आगे कौन से प्रोजेक्ट में दिखेंगे?
सुमित- अभी तो 'वकालत फॉर्म होम' ही आ रहा है। हॉटस्टार के लिए एक सीरीज की थी। उसका पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है। मेरे ख्याल से वो अगले साल आएगी। वो एक वॉर सीरीज है। इंडिया और चाइना की जो वॉर हुई थी, उस पर आधारित है। इसमें काफी गुस्सैल किरदार निभा रहा हूं। इसे करने का एक नया अनुभव रहा।
इन दिनों इंडस्ट्री में नेपोटिज्म और ड्रग्स की चर्चा जोरों पर है। इन बातों से आप कितना इत्तेफाक रखते हैं?
सुमित- पर्सनली मुझे इन चीजों से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। हमारी इंडस्ट्री मीडिया इंडस्ट्री है। हम लोग हमेशा लोगों के सामने रहते हैं, इसलिए हम पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है। एक बहुत सरल उदाहरण देता हूं। एक किराने की दुकान पर वर्षों से रोजाना आलू-प्याज और अनाज की बोरियां बंदे उठाकर रखते रहते हैं। बेचारे भागदौड़ करते हैं, लेकिन जब किराने की दुकान के मालिक का बेटा बड़ा हो जाता है, तो गल्ले पर बेटा ही बैठता है। वो नहीं बैठता है, जो सालों से रोजाना बोरियां उठा रहा है। तो नेपोटिज्म वहां भी है।
क्या है कि इंसान की प्रवृत्ति में ही नेपोटिज्म है। अब यहां की बात होती है तो लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है। एक डायरेक्टर का अपने बच्चे को लेकर फिल्म बना देना उतना हानिकारक नहीं है, जितना एक नेता अपने बच्चे को नेता बना दे और वो नेता देश की नीतियां बदले। अगर वह काबिल न हुआ तो उससे समाज को बहुत ज्यादा फर्क पड़ेगा। वो नेपोटिज्म बहुत ज्यादा डरावना है। रही बात बुरी आदतों की तो वो तो सभी को रहती है।
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