अंधविश्वास और कट्‌टरता के आलोचक रहे अग्निवेश अपने प्रगतिवादी विचारों की वजह से हमेशा कुछ संगठनों के निशानों पर रहे

मैंने स्वामी अग्निवेश को पहली बार तब सुना था, जब मैं जिनेवा में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त के कार्यालय में काम कर रहा था। वे वहां पर दासता के समकालीन तरीकों पर बने कार्यदल के समक्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में गवाही देने आए थे। अब यह कार्यदल और उच्चायोग अस्तित्व में नहीं है।

भगवा कपड़े और पगड़ी पहने अग्निवेश की प्रभावी उपस्थिति और उनके तीखे भाषण के साथ ही उनकी जलती हुई आंखें बिना फ्रेम वाले चश्मे पहने लोगों को बेचैन कर रही थीं। जिन्होंने भी जिनेवा में उन्हें एक्शन में सुना, वे उन्हें भूल नहीं सके। पिछले सप्ताह शुक्रवार को करीब 81 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। वह कई लोगों के लिए एक रहस्य थे। जन्म से ब्राह्मण अग्निवेश की परवरिश उनके दादा ने की, जो एक रियासत के दीवान थे। लेकिन, उन्होंने अपनी पहचान सीमांत व दबे-कुचले लोगों के साथ बनाई।

एक हिंदू साधु जिसने 30 साल में संन्यास ले लिया था, उन्हें आखिर तक हिंदुत्व के कुछ स्वयंभू समर्थक निशाना बनाते रहे। वे एक राजनेता रहे, विधायक रहे और प्रदेश में कैबिनेट मंत्री भी रहे। पिछले कई दशकों तक उन्होंने कोई राजनीतिक पद नहीं लिया था। वह एक आर्य समाजी थे, जो उसकी अंतरराष्ट्रीय संस्था के एक दशक तक प्रमुख भी रहे। बाद में खुद की आर्य सभा के गठन के लिए वह उससे अलग हो गए। 2008 में इसकी पितृ संस्था ने उन्हें निष्कासित कर दिया।

वे ऐसे व्यक्ति थे जो भारतीय मुद्दों और चिंताओं के लिए प्रतिबद्ध थे और उनकी एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय पहचान भी थी। वे 1994 से 2004 तक दासता के समकालीन प्रकार पर संयुक्त राष्ट्र वॉलेंटरी ट्रस्ट फंड के अध्यक्ष रहे। वे कुल मिलाकर एक ऐसे भारतीय थे, जो जन्म से आंध्र प्रदेश के थे, छत्तीसगढ़ में बड़े हुए, हरियाणा में विधायक बने और जिन्हें पूरा देश जानता था। इस सबसे ऊपर वह एक सामाजिक कार्यकर्ता थे। मंत्री रहते हुए भी बंधुआ मजदूर मुक्ति मोर्चा के माध्यम से बंधुआ मजदूरी के खिलाफ उनके प्रयासों की वजह से काफी सफलता मिली।

81 साल पहले वेपा श्याम राव के रूप में जन्मे स्वामी अग्निवेश तमाम विवादों को समेटे होने के बावजूद भारतीय सार्वजनिक जीवन के सर्वाधिक असाधारण व्यक्तियों में याद किए जाएंगे। यह मेरा सौभाग्य था कि करीब 12 साल पहले राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश के समय से ही मैं उन्हें जानता रहा। उन्होंने 1980 के दशक के बाद कभी परंपरागत चुनावी राजनीति नहीं की और वोट की छद्म लोकप्रियता के लिए कोई पद हासिल नहीं किया। लेकिन, इसके बावजूद वह उस मुद्दे के लिए अथक अभियान चलाते रहे, जिसे वह उचित समझते थे।

वह व्यक्ति जिसके पास कानून और कॉमर्स की डिग्री थी व जिसने कभी उस व्यक्ति के जूनियर के रूप में प्रैक्टिस की थी, जो बाद में देश के मुख्य न्यायाधीश बने, उसने अपनी सारी जिंदगी अन्यायपूर्ण कानूनों को चुनौती देने और उन्हें बदलवाने की कोशिश में लगा दी। कुछ मामलों में उन्हें सफलता भी मिली। जैसे कि बंधुआ मजदूरी निवारण कानून। वे अनेक तरीकों से सती प्रथा पर रोक के लिए बने कानून के भी आध्यात्मिक प्रणेता रहे।

एक धार्मिक और आध्यात्मिक विचारक स्वामी अग्निवेश ने अपने हिंदुत्व का परिणय अपने सामाजिक विश्वासों के साथ कर दिया था और वे इसे वैदिक समाजवाद कहते थे। बाल दासता से लेकर, कन्या भ्रूण हत्या जैसे मुद्दों के खिलाफ उनके अथक आंदोलन देशभर में चलते रहे। इस प्रक्रिया में उन पर हुए हमलों में वे बाल-बाल बचे। झारखंड में तो वह भीड़ का शिकार होते-होते बचे थे।

आंदोलनों की वजह से वे कई बार जेल भी गए। उन्हें अनेक बार गिरफ्तार किया गया, लेकिन न तो कभी आरोपित किया गया, न ही सजा मिली। उन्हें एक बार तो 14 महीने तक जेल में रहना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2011 में माओवादियों द्वारा अपहृत पांच पुलिस वालों को छुड़ाने में भी मदद की थी।

हाल के वर्षों में वे धार्मिक सहिष्णुता और अंतर धार्मिक समरसता की प्रशंसनीय आवाज थे। वे अनेक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस्लाम और मुस्लिम समुदाय को समझने का आह्वान कर चुके थे। उन्होंने आतंकवाद पर होने वाले जनसंवाद में भी दखल दिया था। उनका साफ कहना था कि कुछ लोगों के गलत कामों की वजह से पूरे समुदाय को आरोपित करना गलत है।

कई बार तो वे अपने सिद्धांतों को इतनी चरम भाषा में कहते थे कि मुझ जैसे अनेक उदारवादी भी उनका समर्थन करने में कठिनाई महसूस करते थे। वे कहते थे- ‘मैं अपने, यह कहने के लिए कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी है, शब्दों को बदल नहीं सकता। इस्लाम और कुरान को बदनाम करना आतंकवाद का सबसे खराब रूप है।

अंधविश्वास और कट्टरता के आलोचक रहे अग्निवेश उनके प्रगतिवादी विचारों की वजह से कुछ संगठनों के निशानों पर रहे। इसके बावजूद स्वामी अग्निवेश वह व्यक्ति थे, जिन्होंने अपना जीवन, समय और ऊर्जा अपने सपनों के पीछे लगा दी। मैं उन्हें याद करूंगा। ओम शांति! (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


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