सभ्यताओं के विकास के साथ-साथ इंसान लगातार जानलेवा वायरसों का हमला झेलता रहा है। इनसे करोड़ों लोगों की जान भी चली गई। हर बार लगा कि इंसानों पर इससे बड़ा खतरा कभी नहीं मंडराया, मगर तर्कशक्ति के बूते विज्ञान से लैस इंसानों ने बड़े से बड़े वायरस को काबू कर लिया। आधुनिक समय का ऐसा ही एक वायरस है एचआईवी। जो जानलेवा एड्स की वजह बनता है। कई दशकों की दहशत के बाद आखिर 2015 में संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में सभी देशों ने 2030 तक इसे दुनिया से मिटाने का ऐलान कर दिया है और हम धीरे-धीरे इस ओर बढ़ भी रहे हैं।
मौजूदा समय में पूरी दुनिया कोरोना वायरस के ऐसे ही हमले का सामना कर रही है। भारत समेत बड़े-बड़े देश इससे हिल गए, मगर इस बार भी इंसानों के जज्बे ने कोरोना पर लगाम कसना शुरू दिया है। दुनिया में कोरोना की करीब 48 वैक्सीन विकसित की जा रही हैं। इनमें से करीब 9 वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में हैं। माना जा रहा है कि 2021 में कोरोना पर भी इंसान निर्णायक जीत हासिल कर लेगा।
दरअसल, वायरस धरती पर मौजूद सबसे पुराने जीवों में से एक हैं। साइंटिफिक अमेरिकन मैगजीन के अनुसार करीब 6 लाख ऐसे वायरस हैं जो जानवरों से इंसानों में प्रवेश कर सकते हैं। एचआईवी, कोरोना के अलावा स्मॉलपॉक्स या चेचक, सार्स, इबोला, स्वाइन फ्लू, रैबीज भी ऐसे ही जानलेवा वायरस हैं। चेचक ने तो 18वीं और 19वीं सदी में 50 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी, मगर हमने वैक्सीन बनाकर दुनिया से इसे खत्म कर दिया। वर्ल्ड एड्स डे पर हम आपको बता रहे हैं इंसानों पर हमला करने वाले 10 सबसे खतरनाक वायरस और उसपर इंसानी जीत की कहानी।
एचआईवी : संक्रमण फैलने की रफ्तार थमी, 2030 तक जड़ से करेंगे खत्म
आधुनिक दुनिया का खतरनाक वायरस है। पिछले एक दशक में एचआईवी फैलने की रफ्तार थमी है, मगर भारत में अभी चुनौती बाकी है। भारत में करीब 22 लाख एड्स पीड़ित हैं। यूएन एड्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018 में 88 हजार नए मरीज मिले वहीं एड्स से 69 हजार लोगों की मौत हुई। दुनिया के कुल एड्स मरीजों के 10% भारत में है। इंडेक्समंडी पोर्टल के हिसाब से दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद भारत में एड्स के सबसे ज्यादा मरीज हैं। ऐसी समस्याओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2015 में तय 12 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) में से तीसरे लक्ष्य (बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण) के तहत 2030 तक एचआईवी को खत्म करना है। प्रोजेक्ट के तहत 2030 तक नए एचआईवी एड्स से होने वाली मौतों को 90-90% तक कम करना है। इसे प्रोजेक्ट-90 भी कहा जाता है।
इसके तहत टारगेट है कि
- एचआईवी संक्रमितों में 90% को खुद के संक्रमित होने का पता हो
- संक्रमित होने का पता चलने पर कम से कम 90% को इलाज मिले
- इलाज कराने वाले 90% मरीजों में दवाओं से वायरल लोड बेहद कम हो
चेचक : इतिहास का पहला वायरस जिसे वैक्सीन से पूरी तरह खत्म किया गया
इंसान चेचक के भयानक प्रकोप के कई दौर देख चुका है। वैरियोला वायरस से फैले इस महामारी की शुरुआत यों 1520 में मानी जाती है, मगर मिस्र में मिली ममी में भी इसके सबूत मिले हैं। किसी भी वायरस की तुलना में चेचक दुनिया के सबसे अधिक लोगों की जान (30 से 50 करोड़ मौत) ले चुका है। इससे जान जाने की दर 90% है। अकेले बीसवीं सदी में ही इस बीमारी से 20 करोड़ लोगों की मौत हुई। हालांकि वैक्सीनेशन के जरिए इस वायरस को अब दुनिया से पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। 1796 में ब्रिटेन के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने इसकी पहली वैक्सीन ईजाद की थी। मानवता के इतिहास में केवल चेचक ऐसी बीमारी है, जिस पर किसी दवा या वैक्सीन के जरिए पूरी तरह नियंत्रण पाया जा सका। 1979 में डब्लूएचओ ने पूरी दुनिया को चेचक मुक्त घोषित कर दिया था।
इन्फ्लुएंजा- इसके किसी न किसी वायरस से हर साल करीब 5 लाख लोग गंवाते हैं जान
आम खांसी-जुकाम को भी फ्लू कहते हैं और स्पेनिश फ्लू को भी। इन्फ्लूएंजा के 4 कैटेगरी के वायरस कई तरह के संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। स्पेनिश फ्लू इंसान के हालिया इतिहास की सबसे भयंकर महामारियों में से एक है। माना जाता है कि इससे 5 करोड़ लोगों मौत हुई थी। मौजूदा कोरोना की तरह स्पेनिश फ्लू से निपटने के लिए भी लोगों को क्वारंटीन किया जाता था। 1968 में फैले हॉन्गकॉन्ग फ्लू से दस लाख लोगों की जान गई थी। आज भी वो वायरस सीजनल फ्लू के तौर पर हमारे बीच में है। इसी तरह स्वाइन फ्लू भी एच1एन1 वायरस के ही एक और रूप से फैलती है। माना जाता है कि 2009 में 70 करोड़ से 140 करोड़ लोग असिम्प्टोमेटिक (बिना लक्षणों वाले) स्वाइन फ्लू से संक्रमित हुए, जो उस समय की 6.8 अरब आबादी का करीब 11 से 21% था। मगर इंसानों ने इसे भी काबू कर लिया। डब्लूएचओ ने 2010 में इस महामारी को भी समाप्त घोषित कर दिया।
हंतावायरस: संक्रमित चूहे या गिलहरी से फैला, चीन में बनी वैक्सीन
चूहों से फैलने वाले हंता वायरस के बारे में 1993 में पहली बार पता चला था। जब अमेरिका में एक कपल इस वायरस से संक्रमित होने के कारण मर गया था। इसके बाद कुछ ही महीनों में इस बीमारी से 600 लोगों की मौत हो गई थी। हंता वायरस से संक्रमित चूहे या गिलहरी किसी इंसान को काट लें तो इससे भी संक्रमण फैल सकता है। इस वायरस के फैलने का एक प्रमुख कारण चूहों के मल-मूत्र की जगह के संपर्क में आना है। कोरियाई युद्ध के दौरान हंता वायरस की वजह से 3000 सैनिक बीमार हुए थे, इनमें से 12 फीसदी मारे गए थे।
रैबीज : हर साल 20 हजार लोगों की मौत, वैक्सीन से पक्का बचाव मुमकिन
रैबीज एक वायरल बीमारी है, इसके कारण गर्म रक्त वाले जीवों के मस्तिष्क में सूजन (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस) होती है। 99% यह बीमारी कुत्तों के काटने या उनसे खरोंच लगने के कारण होता है। भारत में हर साल 20 हजार लोगों की जान रैबीज से जाती है, जिनमें 40% की उम्र 15 साल से कम होती है। जबकि पूरी दुनिया में यह आंकड़ा 59 हजार है। 150 से ज्यादा देशों में फैली इस बीमारी की एंटी रैबीज वैक्सीन मुफ्त लगाई जाती हैं। यह आमतौर पर कुत्तों के काटने और संक्रमित जानवरों से खरोंच लगने के कारण होता है। प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने 6 जुलाई 1885 में रैबीज के टीके का सफल परीक्षण किया। उनकी इस खोज ने मेडिकल की दुनिया में क्रांति ला दी और मानवता को एक बड़े संकट से बचा लिया था।
इबोला: 44 सालों में 16 देशों में फैला, इसकी वैक्सीन बनी
इबोला सबसे पहले 1967 में सामने आया था। 44 सालों के बाद भी इस वायरस को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है। 44 सालों में यह वायरस 16 देशों में फैल चुका है। सीरिया, लाइबेरिया और गिनी में इसके सबसे ज्यादा मामले सामने आए। 31 हजार मामलों में 28 हजार से ज्यादा मामले इन तीन देशों में आए, जो कुल मामलों का 92% है। इसे डब्ल्यूएचओ ने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया। इस संक्रमण से अभी तक करीब 13 हजार लोगों की जान जा चुकी है। 2013 से 2016 के बीच ही सीरिया, लाइबेरिया और गिनी के 11,300 लोगों की जान ली इस संक्रमण से गई।
मर्स : 8 सालों में 27 देशों तक पहुंचा, 5 वैक्सीन तैयार होने की कगार पर
वायरस सबसे पहले 2012 में सउदी अरेबिया में सामने आया और फिर 2015 में साउथ कोरिया। । जिस वर्ग से सार्स कोरोना वायरस और मौजूदा कोविड-19 आते हैं, उसी वर्ग से मर्स का भी संबंध था। सबसे पहले यह बीमारी ऊंटों को हुई और उससे इंसानो में फैली।। पिछले 8 साल में इसके मामले सामने आ रहे हैं। आठ साल में यह वायरस 27 देशों में फैल चुका है। अभी तक इस वायरस के 2494 मामले सामने आ चुके हैं। इसके चलते अब तक 858 लोगों की जान जा चुकी है। इस वायरस की मृत्यु दर 34% से ऊपर है।
रोटावायरस : हर साल 4 लाख बच्चों की मौत, वैक्सीन से इसे भी मारना मुमकिन
विकासशील देशों में रोटावायरस छोटे बच्चों का अपना शिकार ज्यादा बनाता है। 2008 में रोटावायरस के संक्रमण से 5 साल से ज्यादा उम्र के करीब 4.5 लाख बच्चों की मौत हो गई थी, वहीं 2013 में रोटावायरस के संक्रमण के कारण लगभग 2,15,000 मौतें हुई थी, जिसमें ज्यादातर बच्चे ही थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल इस रोग से करीब 4 लाख बच्चों की मौत हो जाती हैं। इससे संक्रमित बच्चों में डायरिया की गंभीर शिकायत पाई जाती है। पहला वैक्सीन 2006 में मैक्सिको को मिला था। बाजार में अब इसके दो वैक्सीन उपलब्ध हैं।
मारबर्ग : मरने की दर 90%, 2019 में अमेरिका ने बनाई वैक्सीन
आज से 53 साल पहले 1967 में यह वायरस सर्बिया और युगोस्लाविया में सबसे पहले सामने आया। यह वायरस जर्मनी की एक लैब से लीक हो गया था, जो कि बंदरों से इंसानों में आया था। 1967 से लेकर 2014 तक इस वायरस के मामले सामने आते रहे। 13 देशों में इस वायरस का असर देखा गया, जिसमें से अधिकतर अफ्रीकी देश हैं। अब तक इस वायरस के सिर्फ 587 मामले सामने आए हैं। सबसे ज्यादा मामले अंगोला और डीआर कांगो में सामने आए हैं। दोनों देशों को मिलाकर 528 मामले होते हैं, जो कुल मामलों का लगभग 90% है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सिर्फ 587 मामलों में 475 लोगों की मौत हो गई। यह दुनिया का सबसे जानलेवा वायरस है।
कोरोना : भारत में बनेगी रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी
चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस दुनियाभर में एक खतरनाक महामारी का रूप ले चुका है। दुनिया में अब तक कोरोना के 6 करोड़ 30 लाख मामले सामने आ चुके हैं। 14 लाख 66 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। अच्छी बात ये कि अब तक 4 करोड़ 36 लाख लोग ठीक हो चुके हैं। भारत में अब तक अब तक 94.32 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, 88.46 लाख लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.37 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है। दुनिया में कोरोना की करीब 48 वैक्सीन विकसित की जा रही हैं। इनमें से करीब 9 वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में हैं। माना जा रहा है कि 2021 जून-जुलाई में इसकी भी वैक्सीन तैयार हो जाएगी।
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