फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने यह कहकर खुद को भारी संकट में फंसा लिया कि इस्लाम खतरे में है। तुर्की के रेसेप तैयब एर्दोगन ने उन्हें अपने दिमाग की जांच करवाने की हिदायत दे दी। पाकिस्तान के इमरान खान ने मुस्लिम मुल्कों से कहा कि वे पश्चिम को इस्लाम के बारे में जागरूक करें। पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत में विरोध प्रदर्शन होने लगे। लेकिन सवाल यह है कि मैक्रों ने सच कहा या नहीं? इन ताकतवर देशों के नेताओं की प्रतिक्रियाएं संकट की ओर संकेत करती हैं।
अगर करोड़ों मुसलमानों को यह लगता है कि उन्हें ‘इस्लामोफोबिया’ का निशाना बनाया जा रहा है, तो यह उनमें अविश्वास और अलगाव की दहशत पैदा करता है। सच के कई पहलू हो सकते हैं। उन्हें इन पांच बिंदुओं से समझने की कोशिश की जा रही है-
1. सभी धर्मों का राजनीतिकरण हो चुका है और फिलहाल इस्लाम का सबसे ज्यादा हुआ है। इस्लाम दुनिया में दूसरा सबसे व्यापक धर्म है, जिसमें आस्था रखने वाले लोगों की तादाद 200 करोड़ से ज्यादा है। इससे ज्यादा संख्या बस ईसाइयों की है। ईसाइयों के विपरीत, वे जिन देशों में बहुमत में हैं उनमें से बहुत कम देशों में लोकतंत्र है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि करीब 60% मुस्लिम एशिया में हैं और दुनिया में वे जिन चार देशों- भारत, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान- में सबसे बड़ी आबादी में हैं, उन देशों में लोकतंत्र किसी-न-किसी अनुपात में जरूर मौजूद है। इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए कहा जा सकता है कि जिन देशों में मुस्लिम बहुमत में हैं वहां धर्मनिरपेक्षता को एक बुरा शब्द माना जाता है। लेकिन जिन लोकतांत्रिक देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, वहां वे उसकी धर्मनिरपेक्षता को हमेशा कसौटी पर चढ़ाए रखते हैं। फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, बेल्जियम, जर्मनी इसके अच्छे उदाहरण हैं।
2. मुस्लिम आबादी व देशों के बीच राष्ट्रवाद और ‘पैन’ राष्ट्रवाद को लेकर तनाव कायम है। यह उम्माह की वजह से है कि दुनिया के सभी मुसलमान एक ‘पराराष्ट्रीयता’ के हिस्से हैं। इसे आप उम्माह के नेताओं के नाम इमरान खान के उपदेश में देख सकते हैं। इसे हम इस उपमहादेश में कभी-कभी उभरते देखते रहे हैं।
अब फ्रांस में हमने इसे उभरते देखा। इसके कुछ दिलचस्प नतीजे भी आए हैं। धारणा तो ‘पैन’ इस्लामवाद की है मगर मुसलमानों में आपस में ही और मुस्लिम देशों के बीच जितने युद्ध होते हैं उतने दूसरों के साथ नहीं होते। ईरान-इराक़ युद्ध सबसे लंबा रहा। अपने क्षेत्र में, अफगानिस्तान-पाकिस्तान इलाके में मुसलमान मुसलमानों का ही कत्ल करते हैं। ईरान को इजरायल से युद्ध करने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है, सीरिया ने अपनी बर्बादी खुद कर ली है।
3. यह एक क्रूर विडंबना से रूबरू कराता है। ‘पैन’ इस्लामवाद या उम्माह का जज्बा प्रायः बहुराष्ट्रीय आतंकवादी गिरोहों में ही उतरता दिखा है। अलक़ायदा व आईएसआईएस सच्चे अर्थ में ‘पैन’ इस्लामवादी संगठन हैं, जो अधिकतर इस्लामी मुल्कों को निशाना बनाते हैं। अफगानिस्तान, इराक़, सीरिया… गिनते जाइए।
4. मुस्लिम आबादियों व दौलत के बंटवारे की राष्ट्रीय सीमाएं एकदम साफ खिंची हैं। एशिया व अफ्रीका में उनकी ज़्यादातर आबादी गरीब देशों में बसी है, जबकि दुनिया के सबसे अमीर देश, खाड़ी के अरब देशों में उनकी अपेक्षाकृत छोटी आबादी है। वे ‘पैन’ इस्लामवाद के जज्बे के तहत दौलत का बराबर बंटवारा नहीं करेंगे।
उन्हें पश्चिम और अब भारत व इजरायल के साथ भी साझेदारी में खुशी होती है। क्योंकि उनके लिए चाहे वह राजनीतिक ताकत हो या शाही विशेषाधिकार या वैश्विक हैसियत, सब कुछ उस पर निर्भर है जिसे ‘पैन’ इस्लामवाद चुनौती देता है- वह है यथास्थिति।
5. अंत में अधिकतर इस्लामी देशों में लोकतंत्र के अभाव के कारण आप विरोध नहीं कर सकते। बस इस बात से परेशान हो सकते हैं कि शाही हुकूमत अमेरिकी शैतान के हाथों बिक चुकी है। न नारा लगा सकते हैं, न ही कोई ट्वीट कर सकते हैं। यह आपको हमेशा के लिए जेल पहुंचा सकता है या आपका सिर कलम करवा सकता है। चूंकि आप अपने देश में इन सब में से कुछ भी नहीं कर सकते, तो आप यूरोप, अमेरिका में यह करते हैं।
निष्कर्ष में फ्रांस में सेमुएल पैटी की हत्या पर लौटते हैं। हत्यारा अब्दुल्लाख एंजोरोव एक चेचेन शरणार्थी परिवार का 18 वर्षीय लड़का है। चेचेन्या में 95% मुसलमान हैं। रूसियों ने दो बर्बर हमले करके उनके अलगाववादी विद्रोह को दबा दिया था। लेकिन स्थिति ‘सामान्य’ होने तक आधी आबादी शरणार्थी शिविरों में पहुंच गई।
अब हम इस पहेली को समझें। जब चेचेन्या ने रूसियों के खिलाफ जिहाद कर दिया तब अफगानिस्तान के कई पुराने लड़ाकों समेत दुनियाभर के कई मुस्लिम ‘लड़ाके’ उसका साथ देने आ पहुंचे, क्योंकि अब तक उसने यही सीखा था, रूसियों के खिलाफ जिहाद करना। ‘पैन’ इस्लामवाद ने चेचेन्या में मौत और व्यापक गरीबी ला दी।
लाखों लोग पलायन कर उदारवादी लोकतांत्रिक देशों में पहुंच गए। अब वे वहां अपने सामाजिक और धार्मिक मूल्यों के मुताबिक जीना चाहते हैं। यह तय करना चाहते हैं कि आपके कार्टूनिस्ट क्या चित्र बनाएं। इस मुद्दे पर मनन कीजिए और तब बहस कीजिए कि ऊपर जिन पांच बिंदुओं की चर्चा की गई है उनमें कुछ सार तत्व है या नहीं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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