अगर हम खुद पर ही भरोसा नहीं करेंगे तो अच्छे अवसर भी हाथ से निकलते चले जाएंगे

कहानी - श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड में हनुमानजी, जामवंत और अंगद को संपाति ने बता दिया था कि सीता रावण की लंका में है। अब इनके सामने बड़ा सवाल ये था कि इतना बड़ा समुद्र पार करके सीता की खोज करने लंका कौन जाएगा?

सबसे पहले जामवंत ने कहा कि मैं अब बूढ़ा हो गया हूं इसलिए ये काम मेरे बस का नहीं है। इसके बाद अंगद बोला कि मैं समुद्र पार करके लंका तो जा सकता हूं, लेकिन वापस लौटकर आ सकूंगा या नहीं, इसमें मुझे संदेह है।

ये अंगद के कमजोर आत्मविश्वास का संकेत है, उसे अपनी शक्तियों पर, अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं था, इसलिए उसने लंका जाने से मना कर दिया। जब कोई उपाय समझ नहीं आया, तब जामवंत ने हनुमानजी को इस काम के लिए प्रेरित किया।

जामवंत ने हनुमानजी से कहा हे हनुमान, चुप क्यों बैठे हो? तुम तो पवनदेव के पुत्र हो, ताकत में पवनदेव के समान ही हो, बुद्धि, विवेक और विज्ञान के भी जानकार हो। इस संसार में ऐसा कौन सा काम है जो तुम नहीं कर सकते। रामकाज करने के लिए ही तुम्हारा जन्म हुआ है।

ये बातें सुनते ही हनुमानजी को अपनी शक्तियां याद आ गईं और वे उत्साह से भर गए। उन्होंने अपने शरीर का आकार पर्वत की तरह कर लिया। हनुमानजी समुद्र पार करके लंका पहुंचे और लंका में सीता की खोज की, उन्हें श्रीराम का संदेश दिया, लंका जलाई और लौटकर श्रीराम के पास वापस भी आ गए।

सीख - काम छोटा हो या बड़ा, आत्मविश्वास के बिना पूरा नहीं हो सकता है। हम खुद पर भरोसा रखेंगे तो असंभव दिखने वाले काम को भी आसानी से पूरा कर सकते हैं।



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from Dainik Bhaskar

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